भारतीय नागरिकों के मूल कर्तव्य-
दुनिया के सभी देशों के संविधान में उस देश मे नागरिकों के लिए मूल कर्तव्य के बारे में जरूर लिखा हुआ होता है हर देश के नागरिकों की यह जिम्मेदारी होती हैं जो कर्तव्य उनके संविधान ने उनको दिए हैं वो उनका पूरी कर्तव्यनिष्ठा से पालन करें। हमारे देश का संविधान को बनाने में दो वर्ष ग्यारह माह और अठठारह दिन का समय लगा था और इसे 26 जनवरी 1950 को देश में पूर्ण रूप से लागू कर दिया गया था।
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देश के संविधान बनने की प्रक्रिया 9 दिसंबर 1947 से आरंभ हुई थी भारत देश के संविधान को बनाने के लिए 389 सदस्यों की सभा ने कड़ी मेहनत की जिसके फलस्वरूप आज देश का संविधान हमारे सामने हैं। बाबा साहब भीम राव अम्बेडर जी को संविधान का रचयिता माना जाता है इन्ही के अथक प्रयास से देश का संविधान बनकर तैयार हुआ।
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भारत के संविधान में समय समय पर संसोधन की जरूरत पड़ती है और इसमे कई सारे संसोधन किये भी जा चुके हैं। संविधान में संसोधन करने के लिए किसी भी बिल को पहले लोक सभा और फिर राज्य सभा और आखिर में राष्ट्रपति से मंजूरी लेना पड़ता है तब जाकर वह कानून देश में लागू होता है।
हमारे देश के संविधान में अबतक 126 बार संसोधन किया जा चुका है समय समय पर जरूरत के अनुसार संविधान में संसोधन किये जाते हैं और किये जाते रहेंगे।
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देश के नागरिकों की देशभक्ति की भावना को कायम रखने के लिए साल 1976 में सरकार द्वारा गठित स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिश पर देश के संविधान मे मूल कर्तव्यों को जोड़ा गया था। यह संसोधन संविधान में 42 वां संसोधन था। साल 2000 से पहले देश में मूल कर्तव्यों की संख्या 10 थी लेकीन साल 2000 मे 86वें संविधान संसोधन के द्वारा इनकी संख्या बढ़ाकर 11 कर दी गई। भारत देश में मूल कर्तव्य सोवियत संघ से लिए गए हैं आज के समय में मूल कर्तव्यों को संविधान के भाग चार(क) में अनुच्छेद 51 के अंतर्गत रखा गया है।
भारतीय नागरिक के मूल कर्तव्य-
1. संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का आदर करे।
2. स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को ह्रदय में संजोए रखे और उनका पालन करे।
3. भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करे और उसे अक्षूण बनाये रखे।
4. देश की रक्षा करे और आव्हान किये जाने पर राष्ट्र की सेवा करे।
5. भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रात्रतत्व की भावना का निर्माण करे जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभावों से परे हो, ऐसी प्रथाओं का त्याग करे जो महिलाओं के सम्मान के विरुद्ध हों।
6. हमारी सामाजिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्त्व समझे और उसका परिरक्षण करे।
7. प्राकृतिक पर्यावरण की, जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव हैं, रक्षा करे और उसका संवर्धन करे तथा प्राणीमात्र के प्रति दयाभाव रखे।
8. वैज्ञानिक द्रष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जुन तथा सुधार की भावना का विकास करे।
9. सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखे और हिंसा से दूर रहे।
10. व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी छेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करे, जिससे राष्ट्र निरंतर बढ़ते हुए प्रयत्न और उपलब्धि की नई ऊँचाइयों को छू सके।
11. यदि माता पिता या संरक्षक है, छह वर्ष से चौदह वर्ष तक की आयु वाले अपने यथास्थिति, बालक या प्रतिपाल्य को शिक्षा के अवसर प्रदान करे।