तो मैंने एक दिन उससे पूछा की
क्या हम दोस्त नहीं रह सकते?
तो उसने कहा की
मैं तुझे कभी अपना दोस्त नहीं मान पाउँगा
तेरी आँखों में वो रातें कभी अनदेखी नहीं कर पाउँगा
जिस चेहरे को लेकर मैंने सपने देखे थे
उस चेहरे को किसी और का होकर
तुझे दोस्त कभी नहीं मान पाऊंगा
ये फैसला तेरा है तुझे मुबारक
मैं तुझसे दूर रहकर भी इश्क़ निभाउंगा
अच्छा तू कहती है की दोस्ती कर ले तो चल मान लिया
पर एक बात बता
तू जो मै हो चुकी है
उसको मुझसे मिलवाएगी क्या..?
तेरी कमर पे निशान वो जो अब भी बाकी है
उसको दिखाएगी क्या...?
कभी अगर मुझसे टकरा जाए तो मेरे और करीब आने के बहाने नहीं ढूंढेगी क्या...?
शराब की खुमारी में चाँद को देखते वक़्त
मुझे याद नहीं करेगी क्या...?
तू खुद दोस्ती को दोस्ती तक रख पाएगी क्या...?