भगवान श्री कृष्ण की चालीसा का पाठ करने से होंगी तकलीफ़े दूर-
दोस्तों हमारे हिन्दू धर्म में 33 करोड़ देवी और देवता मौजूद है, सभी देवी और देवताओं की अपनी अलग ही महिमा होती है, हर किसी का जाप करने से हमें विशेष फल की प्राप्ति होती है। श्री कृष्ण हो हम सभी लोग जानते हैं, भगवान विष्णु जी ने द्वापर युग में अधर्म का नाश करने के लिए और धर्म की स्थापना करने के लिए श्री कृष्ण के रूप में इस धरती पर जन्म लिया था। भगवान श्री कृष्ण ने सर्वप्रथम अपने मामा यानि कंस का वध करके धर्म की स्थापना की ओर कदम बढ़ाया था।
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महाभारत को कौन भूल सकता है, जिसमें श्री कृष्ण ने पांडवों के द्वारा अधर्मी कौरवों का नाश करके धर्म की स्थापना की थी, वैसे तो श्री कृष्ण ने कई बार अधर्म का नाश किया था लेकिन महाभारत के दौरान अर्जुन को दिया गया गीता का ज्ञान आज भी बेहद लोकप्रिय है, गीता में भगवान श्री कृष्ण में अर्जुन के सभी प्रश्नों का उत्तर दिया था और उन्हे समझाया था कि आत्मा की मौत कभी भी नहीं होती है वो अजर और अमर केवल शरीर की मौत होती है। भगवान श्री कृष्ण की भक्ति करने से व्यक्ति को असीम फल की प्राप्ति होती है, जो व्यक्ति श्री कृष्ण की भक्ति में लीन हो जाता है उसकी सारी बाधायें दूर हो जाती हैं और उसे संसार के बंधन से मुक्ति मिल जाती है।
श्री कृष्ण को प्रसन्न करने के लिए हम श्री कृष्ण चालीसा का पाठ कर सकते हैं इससे भगवान श्री कृष्ण जल्द प्रसन्न हो जाते हैं और अपने भक्तों की मुरादें पूरी करते हैं। जो व्यक्ति श्री कृष्ण चालीसा का पाठ करता है उसके सुख-सौभाग्य में वृद्धि होने लगती है और श्री कृष्ण की कृपा से सिद्धि-बुद्धि,धन-बल और ज्ञान-विवेक की प्राप्ति होती है।जिस किसी पर श्री कृष्ण की कृपा हो जाती है वो व्यक्ति धनवान बनने लगता है और उसे हर क्षेत्र में तरक्की मिलने लगती है एवं उसको हर सुख की प्राप्ति होने लगती है, यदि आप भी चाहते हैं कि आपके ऊपर श्री कृष्ण की कृपा बनी रहे तो आपको श्री कृष्ण चालीसा का पाठ जरूर करना चाहिये।
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कृष्ण चालीसा का पाठ-
बंशी शोभित कर मधुर, नील जलद तन श्याम।
अरुणअधरजनु बिम्बफल, नयनकमलअभिराम॥
पूर्ण इन्द्र, अरविन्द मुख, पीताम्बर शुभ साज।
जय मनमोहन मदन छवि, कृष्णचन्द्र महाराज॥
जय यदुनंदन जय जगवंदन।
जय वसुदेव देवकी नन्दन॥
जय यशुदा सुत नन्द दुलारे।
जय प्रभु भक्तन के दृग तारे॥
जय नट-नागर, नाग नथइया।
कृष्ण कन्हइया धेनु चरइया॥
पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो।
आओ दीनन कष्ट निवारो॥
वंशी मधुर अधर धरि टेरौ।
होवे पूर्ण विनय यह मेरौ॥
आओ हरि पुनि माखन चाखो।
आज लाज भारत की राखो॥
गोल कपोल, चिबुक अरुणारे।
मृदु मुस्कान मोहिनी डारे॥
राजित राजिव नयन विशाला।
मोर मुकुट वैजन्तीमाला॥
कुंडल श्रवण, पीत पट आछे।
कटि किंकिणी काछनी काछे॥
नील जलज सुन्दर तनु सोहे।
छबि लखि, सुर नर मुनिमन मोहे॥
मस्तक तिलक, अलक घुंघराले।
आओ कृष्ण बांसुरी वाले॥
करि पय पान, पूतनहि तार्यो।
अका बका कागासुर मार्यो॥
मधुवन जलत अगिन जब ज्वाला।
भै शीतल लखतहिं नंदलाला॥
सुरपति जब ब्रज चढ़्यो रिसाई।
मूसर धार वारि वर्षाई॥
लगत लगत व्रज चहन बहायो।
गोवर्धन नख धारि बचायो॥
लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई।
मुख मंह चौदह भुवन दिखाई॥
दुष्ट कंस अति उधम मचायो।
कोटि कमल जब फूल मंगायो॥
नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें।
चरण चिह्न दै निर्भय कीन्हें॥
करि गोपिन संग रास विलासा।
सबकी पूरण करी अभिलाषा॥
केतिक महा असुर संहार्यो।
कंसहि केस पकड़ि दै मार्यो॥
मात-पिता की बन्दि छुड़ाई।
उग्रसेन कहं राज दिलाई॥
महि से मृतक छहों सुत लायो।
मातु देवकी शोक मिटायो॥
भौमासुर मुर दैत्य संहारी।
लाये षट दश सहसकुमारी॥
दै भीमहिं तृण चीर सहारा।
जरासिंधु राक्षस कहं मारा॥
असुर बकासुर आदिक मार्यो।
भक्तन के तब कष्ट निवार्यो॥
दीन सुदामा के दुख टार्यो।
तंदुल तीन मूंठ मुख डार्यो॥
प्रेम के साग विदुर घर मांगे।
दुर्योधन के मेवा त्यागे॥
लखी प्रेम की महिमा भारी।
ऐसे श्याम दीन हितकारी॥
भारत के पारथ रथ हांके।
लिये चक्र कर नहिं बल थाके॥
निज गीता के ज्ञान सुनाए।
भक्तन हृदय सुधा वर्षाए॥
मीरा थी ऐसी मतवाली।
विष पी गई बजाकर ताली॥
राना भेजा सांप पिटारी।
शालीग्राम बने बनवारी॥
निज माया तुम विधिहिं दिखायो।
उर ते संशय सकल मिटायो॥
तब शत निन्दा करि तत्काला।
जीवन मुक्त भयो शिशुपाला॥
जबहिं द्रौपदी टेर लगाई।
दीनानाथ लाज अब जाई॥
तुरतहि वसन बने नंदलाला।
बढ़े चीर भै अरि मुंह काला॥
अस अनाथ के नाथ कन्हइया।
डूबत भंवर बचावइ नइया॥
'सुन्दरदास' आस उर धारी।
दया दृष्टि कीजै बनवारी॥
नाथ सकल मम कुमति निवारो।
क्षमहु बेगि अपराध हमारो॥
खोलो पट अब दर्शन दीजै।
बोलो कृष्ण कन्हइया की जै॥
दोहा
यह चालीसा कृष्ण का, पाठ करै उर धारि।
अष्ट सिद्धि नवनिधि फल, लहै पदारथ चारि॥