गायत्री चालीसा का पाठ करने से मिलती है मन की शांति और रोगों से मुक्ति-
दोस्तों हमारे हिन्दू धर्म में कई सारे देवी और देवता मौजूद है और हर देवता की पूजा विशेष प्रकार से की जाती है, माता गायत्री देवी का हमारे धर्म में विशेष महत्व है। कहा जाता है कि जिस किसी पर माता गायत्री जी की कृपा होनी शुरू हो जाती है उसके सारे कष्ट दूर होने लगते हैं और उसका जीवन सफल हो जाता है। माता गायत्री को प्रसन्न करने का सबसे सरल और प्रभावी तरीका गायत्री चालीसा का पाठ करना होता है, गायत्री चालीसा का नियमित रूप से पाठ करने से सारे दुख दूर होने लगते हैं और जीवन में आने वाली परेशानियों से मुक्ति मिलती है।
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गायत्री चालीसा का पाठ करने से हम यह कामना करते हैं कि माता हमारा कल्याण करेंगी और हमारे सभी दुख और दरिद्रता को दूर कर देंगी, माता गायत्री को इस कलियुग में पापों को नाश करने वाली देवी के रूप में देखा जाता है, जो नियमित रूप से गायत्री चालीसा का पाठ करता है उसे सतगुणों की प्राप्ति भी होती है।
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यदि हम रोजाना गायत्री चालीसा का पाठ करते हैं तो हमारे मन में ज्ञान का प्रकाश फैलने लगता है और मन का अंधकार दूर हो जाता है। नियमित रूप से माता गायत्री की चालीसा का पाठ करने से हमारे जीवन में आलस्य, पाप और अज्ञानता का अंत होने लगता है और हमारा जीवन सफल होने लगता है। जो व्यक्ति नियमित रूप से गायत्री चालीसा का पाठ करता है उसको भय चिंता आदि से छुटकारा मिलने लगता है, इसके साथ-साथ गायत्री चालीसा का पाठ करने से रोगियों के सारे रोग दूर हो जाते हैं और वो स्वस्थ हो जाते हैं।
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जिन लोगों को संतान की प्राप्ति नहीं हो रही है उनके लिए गायत्री चालीसा का पाठ बेहद फलदायक होता है, इसका पाठ करने से जल्द ही संतान सुख की प्राप्ति होने का संकेत मिलता है। माता गायत्री देवी की चालीसा का पाठ करने से हमारे मन में शांति आने लगती है यदि आपका भी मन सारा दिन अशांत रहता है तो आपको गायत्री चालीसा का पाठ जरूर करना चाहिये।
माता गायत्री देवी की सम्पूर्ण चालीसा-
ह्रीं, श्रीं क्लीं मेधा, प्रभा, जीवन ज्योति प्रचंड ॥
शांति क्रांति, जागृति प्रगति रचना शक्ति अखंड ॥1॥
जगत जननि मंगल करनि गायत्री सुख धाम ।
प्रणवों सावित्री, स्वधा स्वाहा पूरन काम ॥2॥
भूर्भुवः स्वः ॐ युत जननी ।
गायत्री निज कलिमल दहनी ॥॥
अक्षर चौबीस परम पुनीता ।
इनमें बसे शास्त्र श्रुति गीता ॥॥
शाश्वत सतोगुणी सतरूपा ।
सत्य सनातन सुधा अनूपा ॥॥
हंसारूढ़ श्वेतांबर धारी ।
स्वर्ण कांति शुचि गगन-बिहारी ॥॥
पुस्तक, पुष्प, कमण्डलु, माला ।
शुभ्र वर्ण तनु नयन विशाला ॥॥
ध्यान धरत पुलकित हिय होई ।
सुख उपजत दुख-दुरमति खोई ॥॥
कामधेनु तुम सुर तरु छाया ।
निराकार की अद्भुत माया ॥॥
तुम्हारी शरण गहै जो कोई ।
तरै सकल संकट सों सोई ॥॥
सरस्वती लक्ष्मी तुम काली ।
दिपै तुम्हारी ज्योति निराली ॥॥
तुम्हारी महिमा पार न पावैं ।
जो शारद शत मुख गुन गावैं ॥॥
चार वेद की मात पुनीता ।
तुम ब्रह्माणी गौरी सीता ॥॥
महामंत्र जितने जग माहीं ।
कोउ गायत्री सम नाहीं ॥॥
सुमिरत हिय में ज्ञान प्रकासै ।
आलस पाप अविद्या नासै ॥॥
सृष्टि बीज जग जननि भवानी ।
कालरात्रि वरदा कल्याणी ॥॥
ब्रह्मा विष्णु रुद्र सुर जेते ।
तुम सों पावें सुरता तेते ॥॥
तुम भक्तन की भक्त तुम्हारे ।
जननिहिं पुत्र प्राण ते प्यारे ॥॥
महिमा अपरम्पार तुम्हारी ।
जय जय जय त्रिपदा भयहारी ॥॥
पूरित सकल ज्ञान विज्ञाना ।
तुम सम अधिक न जग में आना ॥॥
तुमहिं जानि कछु रहै न शेषा ।
तुमहिं पाय कछु रहै न क्लेशा ॥॥
जानत तुमहिं तुमहिं ह्वैजाई ।
पारस परसि कुधातु सुहाई ॥॥
तुम्हारी शक्ति दिपै सब ठाई ।
माता तुम सब ठौर समाई ॥॥
ग्रह नक्षत्र ब्रह्मांड घनेरे ।
सब गतिवान तुम्हारे प्रेरे ॥॥
सकल सृष्टि की प्राण विधाता ।
पालक, पोषक, नाशक, त्राता ॥॥
मातेश्वरी दया व्रत धारी ।
तुम सन तरे पातकी भारी ॥॥
जा पर कृपा तुम्हारी होई ।
तापर कृपा करें सब कोई ॥॥
मंद बुद्धि ते बुद्धि बल पावै ।
रोगी रोग रहित हो जावैं ॥॥
दरिद मिटे, कटे सब पीरा ।
नाशै दुख हरै भव भीरा ॥॥
गृह क्लेश चित चिंता भारी ।
नासै गायत्री भय हारी ॥॥
संतति हीन सुसंतति पावें ।
सुख संपत्ति युत मोत मनावें ॥॥
भूत पिशाच सबै भय खावें ।
यम के दूत निकट नहिं आवें ॥॥
जो सधवा सुमिरे चित लाई ।
अछत सुहाग सदा सुखदाई ॥॥
घर वर सुख प्रद लहैं कुमारी ।
विधवा रहें सत्यव्रत धारी ॥॥
जयति जयति जगदंब भवानी ।
तुम सम ओर दयालु न दानी ॥॥
जो सतगुरु सों दीक्षा पावें ।
सो साधन को सफल बनावें ॥॥
सुमिरन करें सुरूचि बड़ भागी ।
लहै मनोरथ गृही विरागी ॥॥
अष्ट सिद्धि नवनिधि की दाता ।
सब समर्थ गायत्री माता ॥॥
ऋषि, मुनि, यति, तपस्वी, योगी ।
आरत, अर्थी, चिंतन, भोगी ॥॥
जो जो शरण तुम्हारी आवै ।
सो सो मन वांछित फल पावेै ॥॥
बल, बुद्धि, विद्या, शील, स्वभाऊ ।
धन, वैभव, यश, तेज, उछाऊ ॥॥
सकल बढ़े उपजें सुख नाना ।
जे यह पाठ करै धरि ध्याना ॥
दोहा
यह चालीसा भक्ति युत, पाठ करें जो कोय ।
तापर कृपा प्रसन्नता गायत्री की होय ॥