Chanakya Niti: आचार्य चाणक्य के अनुसार इन पाँच मंत्रों का ध्यान करके जीवन में पा सकते हैं सफलता-
दोस्तों आचार्य चाणक्य को हम सभी लोग जानते हैं,चाणक्य को हमलोग विष्णु गुप्त कौटिल्य आदि नामों से जानते हैं। चाणक्य बहुत ही कुशाग्र बुद्धि होने के साथ अलग-अलग विषयों पर गहन जानकारी रखते थे, उन्हे अर्थशास्त्र का बड़ा ही विद्वान कहा जाता है, आचार्य चाणक्य के जीवन में कई सारी मुसीबतें आई लेकिन इन्होंने उनका डटकर सामना किया है और मुसीबतों को परास्त करके जीवन के रास्ते पर हमेशा आगे बढ़े रहें। आचार्य चाणक्य ने अपनी बुद्धिमानी से नन्द वंश के राजा घनानन्द को चन्द्रगुप्त के हाथों परास्त किया और इतिहास में अपना नाम दर्ज करवालिया, चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को राजा बनाने में अहम भूमिका निभाई थी।
आचार्य चाणक्य की नीतियों को अपनाकर कोई भी अपने जीवन को सफल बना सकता है, आचार्य चाणक्य ने अपनी नीति में धर्म-अधर्म, कर्म, पाप-पुण्य के अलावा सफलता के भी कई मंत्रों के बारे में बताया है। आज हम आपके लिए चाणक्य नीति के पाँच मंत्र लेकर आये हैं, जिन्हे अपनाकर कोई भी भी व्यक्ति जीवन में सफलता का आनंद ले सकता है, तो बने रहिए हमारे साथ बिना किसी देरी के शुरू करते हैं।
प्दुष्टाभार्या शठं मित्रं भृत्यश्चोत्तरदायकः ।
ससर्पे च गृहे वासो मृत्युरेव नः संशयः ।।
आचार्य चाणक्य के अनुसार इस मंत्र का अर्थ है, कि व्यक्ति को दुष्ट पत्नी, झूठा मित्र, धूर्त सेवक और सांप के साथ रहने से हमेशा परहेज करना चाहिये, क्योंकि इन लोगों के साथ रहने का अर्थ मौत को गले लगाना होता है।
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यस्मिन् देशे न सम्मानो न वृत्तिर्न च बान्धवः ।
न च विद्यागमऽप्यस्ति वासस्तत्र न कारयेत् ।।
आचार्य चाणक्य के अनुसार इस मंत्र का अर्थ है, मनुष्य को उस स्थान पर नहीं रहना चाहिये जहां पर रोजगार के अवसर नहीं हो और मनुष्य को वहाँ भी नहीं रहना चाहिये जहां उसका कोई मित्र ना हो इसके साथ-साथ उस स्थान का भी त्याग कर देना चाहिये जहां ज्ञान का अभाव हो, ऐसा चाणक्य कहते हैं।
जानीयात् प्रेषणे भृत्यान् बान्धवान् व्यसनागमे ।
मित्रं चापत्तिकाले तु भार्यां च विभवक्षये ।।
आचार्य चाणक्य के अनुसार नौकर की परीक्षा तब होती है जब व्यक्ति का बुरा वक्त आता है, वहीं रिश्तेदार की परीक्षा तब होती है, जब व्यक्ति मुसीबत से घिर जाता है, इसके अलावा मित्र की परीक्षा संकट के वक्त होती है और पत्नी की परीक्षा दुख की घड़ी में की जाती है।
आपदर्थे धनं रक्षेद्दारान् रक्षेध्दनैरपि ।
नआत्मानं सततं रक्षेद्दारैरपि धनैरपि ।।
आचार्य चाणक्य के अनुसार इस मंत्र का अर्थ है कि व्यक्ति को अपने जीवन में आने वाली मुसीबतों को ध्यान में रखते हुए धन की बचत जरूर करनी चाहिये, वहीं जरूरत पड़ने पर धन-संपदा को त्यागकर पत्नी रक्षा करनी वहीं यदि खुद की सुरक्षा पर बात आती है तो धन और पत्नी की सुरक्षा को छोड़कर अपनी सुरक्षा सबसे पहले करनी चाहिये।
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अधीत्येदं यथाशास्त्रं नरो जानाति सत्तमः ।
धर्मोपदेशं विख्यातं कार्याऽकार्य शुभाऽशुभम् ।।
आचार्य चाणक्य के अनुसार इस मंत्र का अर्थ है, जो व्यक्ति शास्त्रों के नियमों का पालन करते हुए लगातार कठिन अभ्यास करते हुए शिक्षा का अभ्यास करता है उसे सही और गलत और शुभ कार्यों के बारे में ज्ञान प्राप्त हो जाता है, इस तरह के व्यक्ति के पास सर्वोत्तम ज्ञान होता है जो उसको सफलता दिलाने में मदद करता है।