Chanakya Niti Hindi: आचार्य चाणक्य के अनुसार माँ के गर्भ से ही तय हो जाते हैं शिशु के जीवन के ये बड़े फैसले-
दोस्तों आचार्य चाणक्य को हम सभी लोग जानते हैं, चाणक्य को हमलोग विष्णुगुप्त कौटिल्य आदि के नाम से जानते हैं। चाणक्य ने चन्द्रगुप्त के दरबार में रहते हुए अपने अपमान का बदला लेने के लिए उस समय के प्रतापी राजा घनानन्द का समूल नाश कर दिया था। आचार्य चाणक्य ने अपनी चाणक्य नीति में कई सारी बातें लिखी हैं जो आज भी सही होती है, जो व्यक्ति चाणक्य नीति के अनुसार चलता है उसे जीवन में कभी भी दुख नहीं होता है और ना ही उसको किसी से धोखा मिलता है।
आचार्य चाणक्य के अनुसार जब कोई भी बच्चा अपनी माँ के गर्भ में मौजूद होता है, तो उसके जीवन से जुड़े हुए कई सारे फैसले पहले से ही तय हो जाते हैं, आचार्य चाणक्य ने अपनी नीति शास्त्र में बताया है कि किस प्रकार किसी शिशु जे जन्म से पूर्व ही उसके जीवन के कुछ बड़े फैसले पहले से ही निर्धारित कर दिए जाते हैं। आज हम आपको इन्ही फैसलों के बारे में बताने जा रहे हैं, तो बने रहिए हमारे साथ बिना किसी देरी के शुरू करते हैं।
आयुः कर्म च वित्तं च विद्या निधनमेव च ।
पञ्चैतानि हि सृज्यन्ते गर्भस्थस्यैव देहिनः ।।
इस श्लोक के माध्यम से आचार्य चाणक्य ने बताया है कि सभी देहधारी प्राणियों की आयु, उनके द्वारा किए जाने वाले कर्म (कार्य ), धन , विद्या तथा मृत्यु का समय उनके गर्भावस्था में रहने के दौरान ही तय कर दिए जाते हैं।
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आयु -
आचार्य चाणक्य ने अपनी नीतिशास्त्र में बताया है कि किसी भी शिशु की आयु जब वो गर्भ में होता है तभी तय कर दी जाती है, बच्चे के गर्भ के दौरान ही यह तय कर दिया जाता है कि अल्पायु होगा या दीर्घायु ,इस संसार में आ पाएगा या नहीं आने वाला है।
कर्म-
आचार्य चाणक्य की माने तो हर किसी को अपने कर्मों के अनुसार ही फल प्राप्त होता है, लेकिन ये कर्म हमारे पिछले जन्म के होते हैं, इसलिए हमें अपने कर्मों को करते रहना चाहिए, क्योंकि गीता में यही लिखा है कि कर्म में हमारा अधिकार है फल में हमारा अधिकार नहीं है।
धन और विद्या-
आचार्य चाणक्य के अनुसार शिशु को जीवन मे कितना धन प्राप्त होने वाला है, इसके बारे में जब वो गर्भ में होता है तभी तय कर दिया जाता है, इसके अलावा बच्चा कहां तक पढ़ेगा,विद्या ग्रहण कर ली तो उसका कितना जीवन में सदुपयोग कर पाएंगा, यह सभी बातें मां के गर्भ में तय हो जाती हैं।
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मृत्यु
आचार्य चाणक्य के अनुसार मनुष्य के जीवन में लगभग 101 बार मृत्यु का योग बनता है, जिसमें एक बार काल मृत्यु और बाकी अकाल मृत्यु होती हैं। इन अकाल मृत्यु को कर्म और भोग से बदला जा सकता है।