माता दुर्गा जी की चालीसा का पाठ करने से मिलते हैं कई सारे चमत्कारिक लाभ-
दोस्तों हमारे हिन्दू धर्म में माता दुर्गा का विशेष स्थान है, रोजाना माता दुर्गा जी आराधना करने से हमें कई सारे फायदे होते हैं। चैत्र नवरात्रि और आश्विन नवरात्र माता दुर्गा जो समर्पित होते हैं इस दौरान माता की पूजा करने से हर मनोकामना की पूर्ति होती है। नवरात्र में माता के सभी रूपों की पूजा की जाती है और चारों ओर का माहौल त्योहारों के जैसा होता है, जगह-जगह माता की मूर्तियों को स्थापना की जाती है और जागरण आदि किये जाते हैं।
माता दुर्गा जी चालीसा का पाठ करने से हमें कई सारे लाभ मिलते हैं, चालीसा के बिना माता की पूजा को अधूरा माना जाता है, आज हम आपको दुर्गा चालीसा का पाठ करने के फ़ायदों के बारे में बताने रहे हैं तो बने रहिए हमारे साथ बिना किसी देरी के शुरू करते हैं।
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जो व्यक्ति माता दुर्गा की दुर्गा चालीसा का पाठ नवरात्रि या फिर किसी दूसरे अवसर पर करता है तो उसको आध्यात्मिक, भौतिक और भावनात्मक खुशी की प्राप्ति होने लगती है। नियमित रूप से दुर्गा चालीसा का पाठ किसी एकांत स्थान पर करने से हमारे मन में शांति मिलती है पुराने समय में बड़े-बड़े ऋषि और मुनि भी दुर्गा चालीसा का पाठ करते थे।
दुर्गा चालीसा का पाठ नियमित रूप से करने से हमारे शरीर में सकरात्मकता का संचार होने लगता है इसलिए हमें दुर्गा चालीसा का पाठ नियमित रूप से अवश्य करना चाहिये। दुर्गा चालीसा का पाठ नियमित रूप से करने से दुश्मनों से मुकाबला करने और उन्हे पराजित करने की शक्ति हमारे अंदर पैदा होने लगती है और भी कई सारे फायदे मिलते हैं।
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यदि हम रोजाना दुर्गा चालीसा का पाठ अपने घर पर करते हैं तो इससे हमारा परिवार वित्तीय नुकसान, संकट और अलग-अलग प्रकार के दुखों से बचा रहता है। दुर्गा चालीसा का पाठ रोजाना करने से हमारी मानसिक शक्ति विकसित होने लगती है और हमारा दिमाग मजबूत हो जाता है।
दुर्गा चालीसा का पाठ करने से आपकी खराब हुई सामाजिक स्थिति में सुधार आने लगता है और आपको फिर से समाज में सम्मान मिलने लगता है। दुर्गा चालीसा का पाठ करने से हमारे अंदर मौजूद नकारात्मकता दूर होने लगती है और हम हमेशा सकारात्मक रहने लगते हैं। माता दुर्गा की दुर्गा चालीसा का पाठ करने से माता खुश होकर धन, ज्ञान और समृद्धि का वरदान देती हैं।
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माता दुर्गा जी की सम्पूर्ण चालीसा-
नमो नमो दुर्गे सुख करनी।
नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥
निरंकार है ज्योति तुम्हारी।
तिहूँ लोक फैली उजियारी॥
शशि ललाट मुख महाविशाला ।
नेत्र लाल भृकुटि विकराला ॥
रूप मातु को अधिक सुहावे ।
दरश करत जन अति सुख पावे ॥ ४ ॥
तुम संसार शक्ति लै कीना ।
पालन हेतु अन्न धन दीना ॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला ।
तुम ही आदि सुन्दरी बाला ॥
प्रलयकाल सब नाशन हारी ।
तुम गौरी शिवशंकर प्यारी ॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें ।
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें ॥ ८ ॥
रूप सरस्वती को तुम धारा ।
दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा ॥
धरयो रूप नरसिंह को अम्बा ।
परगट भई फाड़कर खम्बा ॥
रक्षा करि प्रह्लाद बचायो ।
हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो ॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं ।
श्री नारायण अंग समाहीं ॥ १२ ॥
क्षीरसिन्धु में करत विलासा ।
दयासिन्धु दीजै मन आसा ॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी ।
महिमा अमित न जात बखानी ॥
मातंगी अरु धूमावति माता ।
भुवनेश्वरी बगला सुख दाता ॥
श्री भैरव तारा जग तारिणी ।
छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी ॥ १६ ॥
केहरि वाहन सोह भवानी ।
लांगुर वीर चलत अगवानी ॥
कर में खप्पर खड्ग विराजै ।
जाको देख काल डर भाजै ॥
सोहै अस्त्र और त्रिशूला ।
जाते उठत शत्रु हिय शूला ॥
नगरकोट में तुम्हीं विराजत ।
तिहुँलोक में डंका बाजत ॥ २० ॥
शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे ।
रक्तबीज शंखन संहारे ॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी ।
जेहि अघ भार मही अकुलानी ॥
रूप कराल कालिका धारा ।
सेन सहित तुम तिहि संहारा ॥
परी गाढ़ सन्तन पर जब जब ।
भई सहाय मातु तुम तब तब ॥ २४ ॥
अमरपुरी अरु बासव लोका ।
तब महिमा सब रहें अशोका ॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी ।
तुम्हें सदा पूजें नरनारी ॥
प्रेम भक्ति से जो यश गावें ।
दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें ॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई ।
जन्ममरण ताकौ छुटि जाई ॥ २८ ॥
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी ।
योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी ॥
शंकर आचारज तप कीनो ।
काम अरु क्रोध जीति सब लीनो ॥
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को ।
काहु काल नहिं सुमिरो तुमको ॥
शक्ति रूप का मरम न पायो ।
शक्ति गई तब मन पछितायो ॥ ३२ ॥
शरणागत हुई कीर्ति बखानी ।
जय जय जय जगदम्ब भवानी ॥
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा ।
दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा ॥
मोको मातु कष्ट अति घेरो ।
तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो ॥
आशा तृष्णा निपट सतावें ।
मोह मदादिक सब बिनशावें ॥ ३६ ॥
शत्रु नाश कीजै महारानी ।
सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी ॥
करो कृपा हे मातु दयाला ।
ऋद्धिसिद्धि दै करहु निहाला ॥
जब लगि जिऊँ दया फल पाऊँ ।
तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊँ ॥
श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै ।
सब सुख भोग परमपद पावै ॥ ४० ॥
देवीदास शरण निज जानी ।
कहु कृपा जगदम्ब भवानी ॥
॥दोहा॥
शरणागत रक्षा करे,
भक्त रहे नि:शंक ।
मैं आया तेरी शरण में,
मातु लिजिये अंक ॥