सावन विशेष : जानते हैं भगवान भोलनाथ से जुड़े हुए 9 प्रतीकों के रहस्य के बारे में

सावन विशेष : जानते हैं भगवान भोलनाथ से जुड़े हुए 9 प्रतीकों के रहस्य के बारे में

सावन विशेष : जानते हैं भगवान भोलनाथ से जुड़े हुए 9 प्रतीकों के रहस्य के बारे में-
दोस्तों भगवान भोलेनाथ की महिमा को सभी लोग जानते हैं, जिस किसी पर भोलेनाथ की कृपा हो जाती है उसका जीवन धन्य हो जाता है। भगवान भोलेनाथ को मानना बहुत आसान होता है ये जरा ही भक्ति को देखकर अपने भक्त की मनोकामना पूरी कर देते हैं लेकिन भोलेनाथ को सच्चे मन से की गयी पूजा ही सफल होती है। हम सभी लोग जानते हैं कि हमारे संसार की रचना करने वाले ब्रह्मा जी हैं और भगवान विष्णु जी इसके पालन-पोषण करने वाले हैं लेकिन संसार की रक्षा करनी की जिम्मेदारी भोलेनाथ की होती है।

दुनिया पर जब भी को विपत्ति आती है तो उससे बाहर निकालना शंकर जी का काम होता है, जिसे भोलेनाथ जी हमेशा से करते आ रहे हैं और आगे भी करते रहेंगे। भोलेनाथ जी अनेकों प्रतीकों के योग से बने हुए हैं और उनके शरीर पर मौजूद हर आभूषण का विशेष महत्व होता है, आज हम भोलेनाथ के शरीर पर मौजूद 9 प्रतीकों के रहस्य के बारे में जानने वाले हैं तो बने रहिए हमारे साथ बिना किसी देरी के शुरू करते हैं। 

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ये हैं भगवान भोलेनाथ के 9 प्रतीक-
भगवान भोलेनाथ के नौ प्रतीक हैं जिनका अपना विशेष महत्व हैं आज हम इसी के बारे में जानने वाले हैं ये होते हैं वो 9 प्रतीक-


1.डमरू
2.त्रिशूल
3.पैरों में कड़ा
4.मृगछाला
5.शीश पर गंगा
6.चन्द्रमा
7.नागदेवता
8.रुद्राक्ष
9.खप्पर

भगवान शंकर जी के शरीर पर मौजूद 9 प्रतीक और उनके प्रभाव-
 
1.पैरों में कड़ा - भगवान भोले नाथ के पैरों में मौजूद कड़ा अपने स्थिर और एकाग्रता सहित सुनियोजित चरणबद्ध स्थिति को प्रतीत करता है, जो लोग योगी होते हैं या फिर जो अघोरी होते हैं वे भगवान भोलेनाथ की तरह अपने पैरों में भी कड़ा को पहनते हैं। 

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2.मृगछाल- भगवान भोलेनाथ अपने आसान के लिए मृगछाल या फिर मृगासन को धारण करते हैं और यह तपस्या और साधना के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है इस पर बैठकर साधना करने से अधिक प्रभाव होता है, इसके साथ-साथ मृगछाल पर बैठकर साधना करने से मन की अशान्ति दूर होती है दिमाग स्थिर रहता है। 

 

3.रुद्राक्ष- रुद्राक्ष को भगवान भोलेनाथ का विशेष प्रतीक माना जाता है, यह एक फल की गुठली होती है जिसे आध्यात्मिक से जुड़े हुए लोग अक्सर करते हैं। रुद्राक्ष की उत्पत्ति के बारे में ऐसी मान्यता है कि इसकी उत्पत्ति भगवान भोलेनाथ के आँखों से निकले हुए आँसुओ से हुई थी, रुद्राक्ष को धारण करने वाला व्यक्ति हमेशा सकारात्मक रहता है। 

 

4.नगदेवता- नागदेवता भगवान भोलेनाथ के गले में हमेशा पड़े रहते हैं और उनकी शोभा बढ़ाते रहते हैं, ऐसी मान्यता है कि जब अमृत मंथन हुआ था तब अमृत कलश के पूर्व विष को भोलेनाथ ने अपने कंठ में रखा था, इससे होने वाले विकार की अग्नि को दूर करने के लिए भोलेनाथ ने अपने गले में जहरीले सांपों की माला धारण की थी। 

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5.खप्पर- भगवान भोलेनाथ के खप्पर प्रतीक के पीछे की ऐसी मान्यता है कि भोलेनाथ ने समस्त प्राणियों की भूख को शांत करने  के लिए माता अनपूर्णा से भीख मांगा था, इसका अर्थ यह होता है की यदि किसी की भला तुमसे से होता है तो उसकी मदद अवश्य करनी चाहिये। 

 

6.डमरू- भगवान भोलेनाथ अपने हाथ में डमरू हमेशा लिए रहते हैं, यह दुनिया का सबसे पहला वाद्य था, क्योंकि इससे वेदों की उत्पत्ति हुई थी, इसी कारण के इसको नाद ब्रह्म या स्वर ब्रह्म आदि नाम से जाना जाता है। 

 

7.त्रिशूल- त्रिशूल भोलेनाथ का सबसे प्रमुख प्रतीक होता है, इसे दुनिया का सबसे परम तेजस्वी अस्त्र माना जाता है, त्रिशूल में माता जगदंबा की परम शक्ति मौजूद होती है, इसी के द्वारा माता ने दुनिया के राक्षसों का वध किया था, इसमें राजसिक, तामसिक और सात्विक तीनों तरह के गुण होते हैं। 

 

8.सिर पर गंगा- भगवान भोलेनाथ के सिर पर माता गंगा जी मौजूद हैं, अपनी जटाओं से गंगा जी बांधकर भोलेनाथ जी दुनिया को यह संदेश देते हैं कि हम आवेग की अवस्था को दृढ संकल्प के माध्यम से संतुलित कर सकते हैं। 

 

9.चंद्रमा- चंद्रमा भोलेनाथ के सिर पर मौजूद के विशेष प्रतीक माना जाता है, चन्द्रमा आभा, प्रज्वल, धवल स्थितियों को प्रकाशित करता है। चन्द्रमा से मन में शुभ विचार पैदा होते हैं, आप अपने इन्ही अच्छे विचारों के माध्यम से सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ सकते हैं और इससे पूरी दुनिया का कल्याण भी होने वाला है।