सपनों के सच होने या न होने का उल्लेख किसी वैज्ञानिक अध्ययन या वैदिक ज्योतिष आधारित विश्लेषण में नहीं किया गया है। इसलिए, दोपहर के सपनों के सच होने या न होने का कोई वैज्ञानिक सिद्धांत नहीं है।
अधिकांश मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि सपने व्यक्ति के मन की स्थिति और भावनाओं का प्रतिबिंब होते हैं। सपनों के माध्यम से, मन वह सभी विचारों, भावनाओं और इच्छाओं को व्यक्त करता है जो उसमें निहित होते हैं। इसलिए, सपनों में देखी गई घटनाओं के सच होने या न होने से ज्यादा, व्यक्ति के मन की स्थिति और भावनाओं का पता लगाना महत्वपूर्ण होता है।
अतः, दोपहर के सपनों के सच होने या न होने का निर्धारण करना मुश्किल हो सकता है। हालांकि, सपनों में देखी गई घटनाओं के अनुसार व्यवहार करना एक अच्छी सलाह हो सकती है।
अगर किसी व्यक्ति ने दोपहर के समय नींद ली होती है तो उसके सपनों का भी आधार दोपहर की ऊँचाई पर नींद के समय की तरह ही हो सकता है। लेकिन, यदि व्यक्ति दिनभर जागता हो तब भी उसके सपने उसकी मनोदशा और उसकी जीवन अनुभवों के आधार पर बनते हैं।
समय के साथ, व्यक्ति की जीवन अनुभवों और मनोदशा में बदलाव होते हैं जो सपनों को भी प्रभावित करते हैं। इसलिए, सपनों का अध्ययन एक स्वयं अनुभव पर आधारित होता है जो व्यक्ति की विशिष्ट स्थिति और जीवनानुभवों पर निर्भर होता है।
इसलिए, दोपहर के सपनों के सच होने या न होने का कोई वैज्ञानिक सिद्धांत नहीं होता है। अगर आप चाहते हैं कि आपके सपने अच्छे हों, तो आप अपने दिनचर्या को स्वस्थ रखें, सकारात्मक भावनाओं को ध्यान में रखें और सुस्त या तनाव भरी जीवनशैली से दूर रहें।
सामान्य रूप से, लोग दोपहर के समय नींद नहीं लेते होते हैं और यहां तक कि अधिकतर मानसिक कार्य दोपहर के समय होते हैं। इसलिए, दोपहर के समय सपने देखना असामान्य हो सकता है।
अधिकतर वैज्ञानिकों का मानना है कि सपने देखना रेम सोने (REM Sleep) के दौरान होता है। रेम सोना (REM Sleep) अवस्था जब आपके मस्तिष्क का गतिविधि तीव्र होता है और आपका शरीर निश्राम की स्थिति में होता है। इस अवस्था में, आप वास्तविकता से भिन्न विश्व के संवेदनशील स्तरों तक पहुंचते हैं जो आपके सपनों का आधार बनते हैं।
लेकिन, सपने देखने का अनुभव व्यक्ति से व्यक्ति भिन्न होता है और सपनों के विषय में कुछ निश्चित नहीं कहा जा सकता। अधिकतर सपने व्यक्ति की मनोदशा और उसके जीवन अनुभवों के आधार पर बनते हैं।
इसलिए, सपनों के अध्ययन में, समय के लिए बाध्यकारी नहीं होना चाहिए, बल्कि व्यक्ति के जीवन के विभिन्न पहलुओं के आधार पर उन्हें विश्लेषण करन