दोस्तों हिंदू धर्म में मां का अपने बेटे की शादी की बारात में नहीं जाने की प्रथा काफी पहले से चली आ रही है। हालांकि अब इस प्रथा में काफी कमी आ रही है। परंतु, अभी भी कुछ ऐसे राज्य हैं जैसे कि यूपी (उत्तर प्रदेश), एमपी (मध्य प्रदेश) और बिहार जैसे राज्यों में यह प्रथा अभी भी देखने को मिल जाती है। दोस्तों आइए जानते हैं कि ऐसा क्यों होता है।
असल में यह एक ऐसी प्रथा है जो की किसी धर्म से नहीं जुड़ी हुई है बल्कि यह प्रथा सामाजिक आधार पर बनाई गई है। इस प्रथा के बनने के कई कारणों में से कुछ मुख्य कारण इस प्रकार से हैं।
घर संभालने का जिम्मा
क्योंकि सारे पुरुष बारात में चले जाते थे तो ऐसे में महिलाएं, नई दुल्हन की तैयारी में लग जाती थी। नहीं दुल्हन के घर में आने पर रीति-रिवाज के लिए बहुत सारी व्यवस्थाएं करनी होती थी इसलिए वह घर पर ही रह जाती थी।
महिलाओं की सुरक्षा का मामला
ऐसा माना जाता है कि जब मुगलों ने देश पर कब्जा शुरू किया तो इलाकों की सुरक्षा का जिम्मा का इंतजाम भी मुगल सिपाही ही करने लगे। ऐसे समय में बारातियों पर डकैती का खतरा काफी बढ़ गया, जिसके कारण महिलाओं की सुरक्षा का मामला खड़ा हो गया। ऐसे में महिलाओं को लूट-पाट से बचाअण और उनकी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए उनका बारात में न जाकर घर पर ही रहना उचित समझा जाने लगा।
दुल्हन का गृह प्रवेश
नई दुल्हन को घर की लक्ष्मी माना जाता है। ऐसे समय में नई दुल्हन के गृह प्रवेश पर दरवाजे पर कलश में चावल रखे जाते हैं जिससे दुल्हन अपने सीधे पेअर से गिरा कर घर में घर के अंदर प्रवेश करती है। इस रस्म के साथ अन्य रीति रिवाज की तैयारी करने के लिए महिलाएं घर पर रूकती थी ।
हालांकि, अब पहले जैसा दौर नहीं रहा। अब नया दौर आ गया है और इस नए दौर में दूल्हे की मां भी बेटे की शादी में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने लगी हैं।