Magh Purnima 2022: कब है माघ पूर्णिमा और क्या है शुभ तिथि और पूजन विधि-
दोस्तों हमारे हिन्दू धर्म में कई सारे त्योहार मनाए जाते हैं, हिन्दू धर्म में 12 मास होते हैं जिसकी शुरुआत चैत्र मास से होते हैं और वर्ष का अंतिम वर्ष फाल्गुन होता है, प्रत्येक मास में एक पूर्णिमा और एक अमावस्या का दिन होता है। माघ मास के अंतिम दिन यानि पूर्णिमा के दिन को माघ पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है, इस वर्ष यह त्योहार 16 फरवरी 2022 को पड़ने वाला है। माघ पूर्णिमा के दिन चंद्रदेव के साथ-साथ भगवान विष्णु जी पूजा और आराधना की जाता है। आज हम आपको माघ पूर्णिमा के शुभ मुहूर्त और इसके महत्व और माघ पूर्णिमा की पूजन विधि के बारे में बताने जा रहे हैं तो बने रहिए हमारे साथ बिना किसी देरी के शुरू करते हैं।
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माघ पूर्णिमा तिथि
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 16 फरवरी 2022, बुधवार प्रातः 09: 42 मिनट पर
पूर्णिमा तिथि समाप्त: 16 फरवरी 2022, बुधवार रात्रि 10: 55 मिनट पर
शोभन योग: रात्रि 08: 43 मिनट तक
माघ पूर्णिमा का महत्व-
हमारे हिन्दू धर्म में माघ पूर्णिमा का विशेष महत्व होता है, जो व्यक्ति संगम नदी के तट पर रहकर व्रत का अनुष्ठान करते हैं और स्नान करते है, इस दिन लोग अपनी कल्पवास की परंपरा को पूरा करते हैं। मान्यताओं के अनुसार माघ पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु गंगाजल में निवास करते हैं और जो व्यक्ति इस दिन गंगा स्नान करता है उसको विशेष फल की प्राप्ति होती है। ज्योतिष शास्त्र की माने तो माघ पूर्णिमा में चंद्रमा और मघा नक्षत्र सिंह राशि पर मौजूद होते हैं, मघा नक्षत्र होने कारण ही इस तिथि को माघ पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है, मान्यताओं के अनुसार इस दिन देवता गण भी गंगा स्नान करने के लिए प्रयाग आते हैं इसलिए इस दिन गंगा स्नान करना बहुत ही शुभ माना जाता है।
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माघ पूर्णिमा पूजन विधि-
माघ पूर्णिमा के दिन हमे ब्रह्म मुहूर्त में जगना चाहिये और माँ गंगा में स्नान करना चाहिये यदि आप गंगा तट पर मौजूद नहीं हैं तो आप अपने घर में बाल्टी मे गंगाजल डालकर स्नान कर सकते हैं। गंगा स्नान करने बाद हमें ॐ नमो नारायणाय मंत्र का जाप करते हुए अर्घ्य देना चाहिये, फिर तिलांजलि को देने के लिए हमें सूर्य की ओर खड़े हो जाना चाहिये और जल में तिल को डालकर उसका तर्पण करना चाहिये। माघ पूर्णिमा की पूजा में हमें भोग में चरणामृत, पान, तिल, मोली, रोली, कुमकुम, फल, फूल, पंचगव्य, सुपारी, दूर्वा आदि चीजें अर्पित करनी चाहिये और बाद में आरती भी करनी चाहिये, इस तरह से अपने पूजन को समाप्त करना चाहिये।