Chanakya Neeti: इन पशु और पक्षियों से सीखना चाहिए ये गुण, जीवन में मिलेगी सफलता और सम्मान-
दोस्तों आचार्य चाणक्य को हम सभी लोग जानते हैं, चाणक्य को हमलोग विष्णुगुप्त कौटिल्य आदि के नाम से जानते हैं। चाणक्य ने चन्द्रगुप्त के दरबार में रहते हुए अपने अपमान का बदला लेने के लिए उस समय के प्रतापी राजा घनानन्द का समूल नाश कर दिया था। आचार्य चाणक्य ने अपनी चाणक्य नीति में कई सारी बातें लिखी हैं जो आज भी सही होती है, जो व्यक्ति चाणक्य नीति के अनुसार चलता है उसे जीवन में कभी भी दुख नहीं होता है और ना ही उसको किसी से धोखा मिलता है।
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि हमें जहां भी कुछ सीखने को मिलता है, वहाँ पीछे नहीं हटना चाहिए, चाणक्य के अनुसार हर किसी के पास कोई ना कोई गुण जरूर होता है, जिसको हमलोग अपने जीवन में अपना सकते हैं। आचार्य चाणक्य के अनुसार पशु और पक्षियों में भी कुछ गुण मौजूद होते हैं जिनको हमें अपने जीवन में शामिल जरूर करना चाहिए, आज हम आपको इन्ही गुणों के बारे में बताने जा रहे हैं, तो बने रहिए हमारे साथ बिना किसी देरी के शुरू करते हैं।
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कुत्ता हमें ये गुण सिखाता है-
वहवाशी स्वल्पसंतुष्टः सुनिद्रो लघुचेतनः। स्वामिभक्तश्च शूरश्च षडेते श्वानतो गुणाः।।
आचार्य चाणक्य हमें इस श्लोक के माध्यम से यह बताना चाहते हैं कि कुत्ते से हमें बहुत भोजन करने की शक्ति रखने पर भी थोड़े भोजन से ही संतुष्ट हो जाए, अच्छी नींद सोए, परन्तु जरा-से खटके पर ही जाग जाए, अपने रक्षक से प्रेम करे और शूरता दिखाए इन गुणों को सीखने की जरूरत होती है।
कोयल हमें ये गुण सिखाती है-
तावन्मौनेन नीयन्ते कोकिलश्चैव वासराः । यावत्सर्वं जनानन्ददायिनी वाङ्न प्रवर्तते॥
आचार्य चाणक्य के अनुसार इस श्लोक के माध्यम से हमें कोयल के द्वारा यह सीखना चाहिए कि जिस प्रकार कोयल तक तक मौन रहती है जब तक उसकी वाणी मधुर नहीं हो जाती है, ठीक इसी प्रकार हमें सभी के साथ मधुरता के व्यवहार करना चाहिए और कड़वा बोलने से परहेज करना चाहिए।
गधा हमें ये गुण सिखाता है-
सुश्रान्तोऽपि वहेद् भारं शीतोष्णं न पश्यति। सन्तुष्टश्चरतो नित्यं त्रीणि शिक्षेच्च गर्दभात्॥
आचार्य चाणक्य के हमें इस श्लोक के माध्यम से बताना चाहते हैं कि जिस प्रकार गधा बहुत थक जाने के बाद भी बोझे को ढोता रहता है, सर्दी और गर्मी में भी के समान काम करता है और हमेशा संतोष करता रहता है, हमें गधे से इन सारे गुणों को सीखने की जरूरत होती है, इन गुणों को अपने जीवन में उतारकर अपने जीवन में सफलता अर्जित कर सकते हैं।
सिंह हमें ये गुण सिखाता है-
प्रभूतं कार्यमल्पं वा यन्नरः कर्तुमिच्छति। सरिंभे तत्कार्य सिंहादेकं प्रचक्षते।।
आचार्य चाणक्य इस श्लोक के माध्यम से यह बताना चाहते हैं कि जिस प्रकार से शेर अपने द्वारा पकड़े गए शिकार को नहीं छोड़ता है ठीक उसी प्रकार हमें अपने अपने काम को शुरू करने के बाद बीच में नहीं छोड़ना चाहिए, एक बार काम शुरू कर देने के बाद पूरा खत्म करने के बाद ही रुकना चाहिए और उस काम को पूरा करने के लिए अपनी पूरी शक्ति को लगा देना चाहिए।
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बगुला हमें ये गुण सिखाता है-
इंद्रियाणि च संयम्य बकवत् पंडितो नरः। वेशकालबलं ज्ञात्वा सर्वकार्याणि साधयेत्।।
आचार्य चाणक्य इस श्लोक के माध्यम से यह बताना चाहते हैं कि जिस तरह बगुला अपने पूरे दिमाग को केंद्रित करके अपने शिकार को करता है, ठीक उसी प्रकार देश, काल और अपनी सामर्थ्य को अच्छी प्रकार से समझकर ही अपने कार्यों को करना चाहिए। चाणक्य के अनुसार जब कोई पूरे एकाग्र मन के कोई काम करता है तो उसको उस काम में सफलता जरूर प्राप्त होती है।
मुर्गा हमें ये गुण सिखाता है-
प्रत्युत्थानं च युद्ध च संविभागं च बन्धुषु। स्व्यमाक्रम्य भुक्तं च शिक्षेच्चत्वारि कुक्कुटात्।।
आचार्य चाणक्य इस श्लोक के माध्यम से यह बताना चाहते हैं कि हमें मुर्गे से ब्रह्मुहूर्त में जागना, रण में पीछे न हटना, बंधुओ में किसी वस्तु का बराबर भाग करना और स्वयं चढ़ाई करके किसी से अपने भक्ष्य को छीन लेना इन बातों को सीखने का प्रयास करना चाहिए। जिस प्रकार
मुर्गा सुबह उठ जाता है, और दूसरे मुर्गे से लड़ाई में पीछे नहीं होता है, वहीं अपने खाने की चीजों को दूसरे मुर्गों के साथ बांटकर खाता है और अपने मुर्गी के साथ मिलजुल कर रहता है, इन गुणों को मुर्गे से सीखने की हमें जरूरत होती है।