एक रोचक और प्रेरणादायक कहानी 'ईमानदार वीर बालक'

एक रोचक और प्रेरणादायक कहानी 'ईमानदार वीर बालक'

एक रोचक और प्रेरणादायक कहानी 'ईमानदार वीर बालक'

दोस्तों एक समय की बात है एक दिनेश नाम का एक लड़का था, जो अपने स्कूल में तीसरी कक्षा का छात्र था, दिनेश के स्कूल में स्वतंत्रता दिवस का राष्ट्रीय पर्व मनाया जाने वाला है, जिसको लेकर दिनेश ने मन में बेहद उत्साह था। दिनेश इस राष्ट्रीय त्योहार का हिस्सा बनने के लिए अपनी कक्षा के अध्यापक से कह दिया था जिसके बाद वो बेहद प्रसन्न था इसके बाद वो बड़ी जोरों से हिस्सा लेने की तैयारी करने में जुट गया। 

दिनेश स्वतंत्रता दिवस की परेड में हिस्सा लेने वाले सभी दोस्तों के साथ रोजाना अभ्यास करता था जिसके कारण उसका मन बेहद उत्साहित रहता था, फिर धीरे-धीरे दिन बीतते गए और स्वतंत्रता दिवस का दिन आ गया इसलिए इस दिन की परेड का हिस्सा बनने के लिए दिनेश स्कूल जाने के लिए तैयार होने लगा तो उसने अपने दादा जी को खोजा तो दादा जी नहीं मिले फिर उसने अपनी माँ से दादा जी के बारे में पूछा तो माँ ने बताया कि दादा जी गाँव गए थे।

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गाँव में दादी जी तबीयत खराब थी और वो अस्पताल में भर्ती थी, दिनेश के दादा जी के साथ उनके पिता जी भी गाँव गए थे जिसके बाद उनकी माँ ने दिनेश से कहा 'मैं तुमको स्कूल में छोड़ देती है और फिर मैं गाँव चली जाऊँगी' लेकिन रमेश अपनी दादी को देखने के लिए गाँव जाने की जिद करने लगा, जिसके बाद माँ ने दिनेश को अपने साथ गाँव चली गई, जिसके कारण वो कुछ दिन स्कूल नहीं पहुँच पाया। 

 

दिनेश कुछ दिनों के बाद स्कूल गया तो स्कूल की प्रिंसपल ने सभी छात्रों को बुलाया जो स्वतंत्रता दिवस की परेड में शामिल होने के लिए स्कूल में नहीं उपस्थित हुए थे, लेकिन दिनेश का नाम इस बार नहीं पुकार गया बाकी सभी छात्रों को अपने अभिभावक के साथ स्कूल में आने के लिए कहा गया। दिनेश ने सोचा कि प्रिंसपल जी हमारा नाम लेना भूल गए हैं इसलिए वो ऑफिस गया और बोला "मैं भी उस दिन परेड में नहीं आया था। मगर आपने मेरा नाम नहीं लिया क्या मुझे भी अपने माता-पिता को बुलाकर लाना है ?"

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दिनेश की इस बात को सुनकर स्कूल के प्रिंसपल बेहद प्रसन्न हुए और दिनेश को बताया आपके पिता ने मुझे पहले ही स्कूल ना आने का कारण बता दिया था लेकिन हम तुम्हारी ईमानदारी को देखकर बेहद प्रसन्न हुए हैं इसलिए अब तुम अपनी पढ़ाई पर ध्यान लगाओं और अगली वर्ष परेड में जरूर शामिल होना । 

 

कहानी से सीख- इस कहानी के माध्यम से हमें यह सीख मिलती है, हमें हमेशा सत्य का साथ देना क्योंकि सत्य बोलने वाला व्यक्ति परेशान हो सकता है लेकिन पराजित कभी नहीं हो सकता है।