एक रोचक कहानी 'कौवा और सोने का हार'
दोस्तों एक समय की बात है एक जंगल में एक बड़ा सा पेड़ था जिस पर एक कौवा और उसकी पत्नी रहते हैं, एक दिन कौवे के पत्नी ने पाँच अंडे दिए और सारा दिन और रात उन अंडों की देखभाल करती थी। कौवा भोजन की तलाश में दिन में इधर-उधर चला जाता है और रात में सभी एक साथ उस घोसलें में रहते थे। जिस पेड़ पर कौवा और उसकी पत्नी रहती थी ठीक उसी के नीचे एक बिल था जिसमें एक जहरीला सांप रहता है, एक दिन की बात है जब कौवे और उसकी पत्नी घोंसले में नहीं थी तभी मौका पाकर उन अंडों को सांप ने कहा लिया।
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जब कौवा और उसकी पत्नी वापस लौटी तो देखा कि घोंसले में अंडे नहीं थे, ये देखकर दोनों बहुत परेशान हो गए हैं क्योंकि हो सकता है वो जहरीला सांप अगली बार उन कौवे और उसकी पत्नी को अपना भोजन बना सकता था, इसलिए सांप को सबक सिखाने के लिए
कौवे ने मन बना लिया है और फिर एक योजना बनाकर उसको सबक सिखाने की पूरी तैयारी कर ली।
अगले दिन कौवा राजा के महल में जाता है और मौके को देखते हैं रानी के कीमती हार को उठाकर उड़ गया, यह देखकर रानी बड़ी जोर स चिल्लाई और कहने लगी, “अरे अंगरक्षकों पकड़ो उस कौवे को, देखो वो मेरा कीमती हार चुराकर जा रहा हैं। कैसे भी करके मुझे मेरा हार वापस लाकर दो नहीं तो मैं तुम सबका सिर कलम करा दूंगी।”
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ये देखकर राजा के नौकरों ने कौवे का पीछा करना शुरू कर दिया, कुछ देर के बाद राजा के नौकर जंगल में पहुँच जाते हैं और देखते हैं उस कौवे ने रानी के हार को एक पेड़ के नीचे बने बिल के पास छोड़ दिया है, जब नौकरों ने हार को बिल से निकालने की कोशिश की तो देखा
उस बिल के अंदर सांप सो रहा था, सांप यह देखकर बिल के बाहर आ गया और नौकरों को डसने का प्रयास करने लगता है लेकिन सारे नौकरो ने मिलकर लठियों से उस जहरीले सांप को मौत के घाट उतार दिया है। इस प्रकार कौवे ने सांप को मरवाकर अपने अपना बदला है जिसके बाद दोनों कौवा और उसकी पत्नी प्रसन्न हुए और फिर खुशी-खुशी एक दूसरे से साथ उस पेड़ पर निडर हो रहने लगे।